हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और सप्ताह के अनुसार इसका महत्व बढ़ जाता है। जब यह व्रत शुक्रवार को पड़ता है, तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस बार यानी वैशाख माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रदोष व्रत 9 मई 2025 को किया जा रहा है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर और पावन व्रत कथा पढ़ने से जीवन की हर बाधा दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
व्रत की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, एक बार एक विधवा ब्राह्मणी अपने छोटे पुत्र के साथ वन में निवास करती थी। वह अत्यंत धर्मपरायण और शिवभक्त थी। वह प्रत्येक प्रदोष के दिन व्रत रखती और भगवान शिव का ध्यान करती थी। एक दिन वन में राजकुमार शिकार के दौरान घायल हो गया। ब्राह्मणी ने उसकी सेवा की और उसे अपने घर ले आई।
कुछ समय बाद जब राजा को अपने पुत्र के बारे में पता चला तो उन्होंने ब्राह्मणी को दरबार में बुलवाया। ब्राह्मणी की निष्ठा और प्रदोष व्रत के प्रभाव से राजा बहुत प्रभावित हुआ और उसने ब्राह्मणी के पुत्र को राज्य का मंत्री बना दिया। कहा जाता है कि भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मणी के जीवन की सभी कठिनाइयां दूर हो गईं।
व्रत विधि
शुक्र प्रदोष व्रत में प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। दिनभर फलाहार करें और सूर्यास्त के समय भगवान शिव का अभिषेक करें। पंचामृत से शिवलिंग का स्नान कराएं, बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, भस्म आदि अर्पित करें। इसके बाद व्रत कथा पढ़ें और आरती करें।
व्रत का महत्व
शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी और शुक्र ग्रह से जुड़ा होता है। वहीं प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन व्रत करने से शिव जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। खासकर आर्थिक तंगी, वैवाहिक समस्याएं, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है।