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Narasimha Jayanti 2025: प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकश्यप का घमंड... श्रीहरि ने लिया अद्भुत रूप, जो देता है अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश, जानें कब है नृसिंह चतुर्दशी

Narasimha Chaturdashi 2025: जब भगवान विष्णु ने खंभे से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप के आतंक का किया अंत, जानिए नरसिंह देव की पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

Ravi Rohan
  • May 9 2025 1:34PM

हर वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह भगवान का प्रकट्य 'नृसिंह चतुर्दशी' धूमधाम से मनाई जाती है। यह दिन धर्म और आस्था का प्रतीक माना जाता है, जब भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए अद्भुत नरसिंह रूप में प्रकट होकर राक्षस हिरण्यकश्यप का अंत किया था।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह अवतार आधे सिंह और आधे मानव का था, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। आइए जानें इस दिन का महात्म्य, व्रत पूजन विधि और शुभ समय।

इस वर्ष नरसिंह जयंती रविवार, 11 मई को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार चतुर्दशी तिथि 10 मई को शाम 5:29 बजे आरंभ होकर 11 मई को रात 8:02 बजे तक रहेगी। भगवान नरसिंह का प्रकट होने का समय संध्या काल था, इसलिए व्रत और पूजन 11 मई को किया जाएगा।

पूजन मुहूर्त: शाम 4:21 बजे से 7:03 बजे तक
पूजा का कुल समय: 2 घंटे 42 मिनट

नरसिंह जयंती व्रत और पूजन की विधि

-प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजन स्थान को पवित्र करें।

-पूजा के लिए लाल या पीले वस्त्र से ढकी वेदी पर भगवान नरसिंह की प्रतिमा या विष्णु जी की तस्वीर स्थापित करें।

-व्रत का संकल्प लें और पंचामृत से भगवान का अभिषेक करें।

-चंदन, हल्दी, कुमकुम, पुष्प और गुड़-चना का भोग अर्पित करें।

-उन्हें पीले या लाल वस्त्र पहनाएं, पीली माला चढ़ाएं और दीप जलाकर आरती करें।

भगवान को भोग लगाते समय निम्न मंत्र पढ़ें:

"नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।।"

पूजन के बाद घी का दीपक जलाएं, तुलसी दल अर्पित करें और भगवान नृसिंह के मंत्रों का जाप करें।

महामंत्र और जप

-ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥

-ॐ नृम नरसिंहाय शत्रुबल विदीर्नाय नमः

-ॐ नृम मलोल नरसिंहाय पूरय पूरय नमः

पौराणिक कथा: भक्त की पुकार पर प्रकट हुए भगवान

पुराणों के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप ने भगवान में अटूट श्रद्धा रखने वाले अपने पुत्र प्रह्लाद को अनेक बार मारने की कोशिश की। अंततः जब अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुंचा, तो भगवान विष्णु ने स्तंभ को फाड़ते हुए नरसिंह रूप में अवतार लिया और हिरण्यकश्यप को अपनी जांघ पर लिटाकर नखों से चीर डाला। इस रूप में उन्होंने सभी शर्तों को तोड़ा- न दिन था, न रात; न घर के अंदर, न बाहर; न अस्त्र से, न शस्त्र से।

नृसिंह जयंती का महत्व

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान नरसिंह की पूजा करने से भय, रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है। उनके आशीर्वाद से जीवन में खुशहाली आती है और सभी बाधाओं का नाश होता है। इस दिन व्रत और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और ईश्वर की अपने भक्तों के प्रति अटूट करुणा का प्रतीक है।


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